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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

प्रेम ही आनंद है

श्री केशव रामचंद्र डोंगरे जी परम भागवत संत थे। उन्होंने जीवन भर देश के सभी राज्यों में जाकर सदाचार और धर्म का प्रचार किया। एक दिन एक गृहस्थ व्यक्ति डोंगरे जी महाराज के सत्संग के लिए पहुंचा। उसने अन्य श्रद्धालुओं की तरह ही प्रश्न किया, ‘महाराज,गृहस्थी में लगे रहने के कारण भक्ति और भजन-पूजन में मन नहीं रम पाता। गृहस्थी के प्रपंच में रहकर भी ईश्वर की कृपा प्राप्ति का सरल साधन बताएं।’
डोंगरे जी महाराज ने कहा, ‘बहुत सरल साधन है। हृदय से राग, द्वेष, घृणा, मेरा-तेरा की भावनानिकालकर सभी के प्रति प्रेम के भाव मन में पैदा करने का अभ्यास करो। जो सबसे प्रेम करने लगता है, उसके घर में स्वतः ईश्वर का वास हो जाता है।’
डोंगरे जी ने उपदेश में कहा, ‘बड़े पुण्यों से मानव जीवन प्राप्त होता है। मनुष्य को यहसमझ लेना चाहिए कि इंद्रियों को भोग का साधनबनाने वाला अपना जीवन निरर्थक कर रहा है। असंयमित भोग से इंद्रियां दूषित होती हैं, उनका क्षय होता है। जो इंद्रियों को सत्कर्मों की ओर उन्मुख करके भक्ति करता है, उसके तमाम विकार नष्ट हो जाते हैं। जिसका हृदय किसी दुखी व्यक्ति के दुख से पिघलता है,उसके हृदय में प्रभु प्रकट होते हैं। जब अंदर से आनंद की अनुभूति होने लगे, तो समझ लेना कि भगवान कृपा की वृष्टि कर रहे हैं।’
डोंगरे जी कहा करते थे, ‘यदि तुम्हारे पास किसी दुखी की सहायता के लिए धन नहीं है, शरीर में सामर्थ्य नहीं है, तो दुखी के प्रति सांत्वना के शब्द ही पुण्यकारक होते हैं। जिसके मन में प्रेम और करुणा है, वहां भगवान का वास होता है।’

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