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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

स्वर्ग-नरक

विभिन्न मत-मजहबों में स्वर्ग-नरक की अपने-अपने ढंग से परिकल्पना की गई है। कुछ लोग पृथ्वी के अलावा दूसरे लोक में स्वर्ग-नरक का अस्तित्व मानते हैं, तो कुछ धर्मों में जन्नत-बहिश्त का वर्णन किया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, स्वर्ग को ब्रह्मलोक, दिव्यलोक आदि नामों से संबोधित किया गया है, जहां के राजा इंद्र हैं। मृत्युके बाद वहां यमराज कर्मों के अनुसार दंड का निर्णय करता है। सत्कर्म करने वालों को स्वर्ग और गलत कर्म करने वालों को नरक दिया जाता है।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में वेदों का उद्धरण देते हुए लिखा है, ‘जिस पृथ्वी पर दूध, दही, घी जैसेदिव्य अमृतमय पदार्थ हैं, जहां के नागरिक सदाचारी, उच्च आदर्श वाले, सत्यनिष्ठ व धर्मानुसार जीवन बिताने वाले हैं, वह साक्षात स्वर्ग ही है। जिस घर में आदर्श पत्नी, आज्ञाकारी पुत्र और शांति व आनंद का वातावरण है, वह घर स्वर्ग है। जहां दुर्व्यसनी, दुराचारी राग-द्वेष का वातावरणबनाते हैं, जिस घर में कलह व अशांति है, वह नरक है।’
अथर्ववेद में कहा गया है, स्वर्ग लोकमभि-नो नयसि सं जायया सह पुत्रैः स्याम। अर्थात, हम अपनी पत्नी व पुत्रों के साथ जहां शांतिपूर्वक रहें, वह स्वर्ग ही है। विद्वानपुरुषों का जहां सत्संग होता है, वहां स्वतः स्वर्ग का वातावरण बन जाता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं, यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी। विभवे यश्च संतुष्टस्तस्य स्वर्ग इहवै हि॥’ यानी, जिनकीसंतानें संयमी हैं, पत्नी आदर्शों का पालन करने वाली है, जरूरत लायक धन-धान्य है, ऐसे सद्गृहस्थ स्वर्ग में ही तो रहते हैं।

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