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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

ज्ञान का दीपक

कहा गया है, बिनु सत्संग विवेक न होई। बड़े-बड़े महापुरुष ही नहीं, बल्कि साक्षात अवतार माने जानेवाले श्रीराम तथा श्रीकृष्ण भी सदैव शास्त्रज्ञ ऋषि-मुनियों का सत्संग कर अपनी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए लालायित रहा करते थे।
एक दिन भगवान श्रीराम गुरुदेव वशिष्ठ जी का सत्संग कर रहे थे। वशिष्ठ जी अपने उपदेश मेंकह रहे थे, ‘जब सत्पुरुषों के सान्निध्य से मन वैराग्य में रमने लगता है, तब ऐसा विवेक उत्पन्न होता है कि भोगों की तृष्णा स्वयमेव नष्ट हो जाती है और सांसारिक विषय नीरस लगने लगते हैं। अज्ञान नष्ट हो जाने परविवेकी पुरुष भोग, वैभव, धन, संपत्ति आदि को जूठी पत्तल की तरह तुच्छ समझकर उनकी ओर देखता तक नहीं।’
वशिष्ठ जी ने आगे बताना शुरू किया, ‘विवेक वैराग्य संपन्न सत्पुरुषों के सत्संग से हीमनुष्य का सभी प्रकार का अज्ञान दूर होता है। ऐसे सत्पुरुषों के माध्यम से ही राष्ट्र और समाज का कल्याण संभव है। जिस प्रकार से दीपक अंधकार का नाश करता है, उसी तरह से विवेक और ज्ञान-संपन्न महापुरुष सभी तरह के अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करने में समर्थ होते हैं।’
गुरु वशिष्ठ के अनुसार, विवेकी ज्ञानी महापुरुष वे हैं, जिनमें तमोगुण का सर्वथा अभाव है और जो रजोगुण से रहित हैं। ऐसे विवेकी महापुरुष वस्तुतः गगनमंडल में सूर्य के समान हैं। ऐसे लोगों के सत्संग से प्राप्त विवेक ही तमाम तरह के अंधकाररूपी बंधनों से मुक्ति दिलाकर वासनायुक्त अज्ञानी जीव का संसार सागर से उद्धार कर देता है।’

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