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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

सच्चा भिक्षु कौन

धर्मग्रंथों में साधु-संतों के लक्षण बतातेहुए कहा गया है, ‘जो सदाचारी है, जिसने वासना और लोभ पर विजय प्राप्त कर ली है, वही सच्चा साधु है।’ भगवान बुद्ध कहते हैं, ‘साधु वही है, जिसने सब पाप त्याग दिए हैं। जिसके पाप शमित हो गए हैं, वही श्रमण कहलाता है।’ स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहते हैं, ‘जिसकी कथनी-करनी एक है, जो पूर्ण संयमी व करुणा भावना से ओतप्रोत है, परोपकार के लिए तत्पर रहता है, वही संत है।’
एक बार एक साधक तीर्थंकर महावीर के सत्संग के लिए पहुंचा। उसने विनम्रता से कहा, ‘भगवन, मैं वर्षों से साधनामय जीवन बिता रहा हूं। अब मैं भिक्षु बनने की आकांक्षा रखता हूं।’ महावीर बोले, ‘मैं तुम्हें साधु ही नहीं, परमात्मा बनने का साधन बताता हूं। जो राग, द्वेष, मोह, मद आदि विकारों को जीत लेता है औरआत्मा का चिंतन करता है, वह स्वयं ही आत्मा से परमात्मा बन जाता है।’
महावीर कहते हैं, ‘सिर मुंडा लेने से नहीं, बल्कि समता धारण करने से कोई श्रमण होता है।वन में रहने से नहीं, बल्कि ज्ञान अर्जित करने से कोई मुनि होता है। मंत्र जपने से कोई ब्राह्मण नहीं होता। कुश-चीवर धारण करने मात्र से कोई तपस्वी नहीं होता। तप करने से तापस होता है। संयम का पालन करने वाला ही सच्चा मानव है।’
महावीर कहते हैं, ‘जिसका हृदय पवित्र नहीं है, जिसने विकारों पर विजय प्राप्त नहीं की है, वह धार्मिक नहीं हो सकता। जो सांसारिक प्रपंचों में फंसा रहता है, वह साधु नहीं हो सकता। सदाचारी और सत्य-अहिंसा पर अटल रहने वाला ही सच्चा भिक्षु कहलाने का अधिकारी है।’

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